Plastic Ke Nuksan | लिवर, किडनी के साथ दिमागी सेहत के लिए भी खतरनाक है प्लास्टिक, हो जाएं अलर्ट

अगर आप अभी अपने चारों और नजर घुमाओगे तो ज्यादातर चीजें प्लास्टिक की ही बनी हुई दिखाई देंगी। प्लास्टिक का इस तरह अंधाधुंध इस्तेमाल हमारी सेहत के लिए जहर साबित हो रहा है। धीरे-धीरे यह प्लाटिक हमारे भोजन, पानी और हवा में शामिल होकर शरीर में घुल रहा है। जिससे लिवर, किडनी सहित यह दिमाग तक को नुकसान पहुंचा रहा है। अब समय अलर्ट होने का है। इस लेख के माध्यम से रायपुर के न्यूरोफिजिशियन डॉ. अनिकेत गुप्ता से हम समझेंगे की Plastic Ke Nuksan कौन-कौन से हैं। साथ ही यह जानेंगे की प्लास्टिक हमारे ब्रेन, किडनी और लिवर को कैसे डैमेज कर रहा है और आगे आने वाले समय में यह सेहत के लिए कितना बड़ा खतरा बन सकता है।

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इस तरह हमारी सेहत पर हमला कर रहा है प्लास्टिक- Plastic Ke Nuksan

किडनी को पहुंचा रहा नुकसान 

जर्नल ऑफ नैनोबायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित की गई एक रिपोर्ट के अनुसार इन दिनों लोग सबसे ज्यादा किडनी की सूजन का सामना कर रहे हैं। यह समस्या पॉलीस्टाइरीन माइक्रोप्लास्टिक्स की वजह से उभरती है। इसी वजह से ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस भी बढ़ता है। अगर यह समस्या लंबे समय तक बनी रहती है तो इससे खतरा बढ़ता चला जाता है और किडनी फेल्योर तक का सामना करना पड़ सकता है।

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बढ़ जाता है कैंसर होने का खतरा

द लैंसेट में पब्लिश हुई एक रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक न्यूरोटॉक्सिक प्रकृति की होती है। इसी वजह से यह हमारी बॉडी के सेल्स को प्रभावित करती है। जिससे सेल्स के कामकाज पर भी असर पड़ता है। इसी वजह से बहुत बार प्लास्टिक का अधिक इस्तेमाल कैंसर होने के खतरे को बढ़ाने का भी काम करता है।

गड़बड़ा जाता है लिवर-Plastic Side effects in Hindi 

प्लास्टिक में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद होने की वजह से यह हमारे पाचन तंत्र पर बहुत ही बुरा असर डालता है। सेलुलर रिएक्शन की वजह से लिवर में भी कई तरह की परेशानियां पैदा होने लगती हैं। जिससे धीरे-धीरे गट हेल्थ को भी नुकसान पहुंचता है।

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मस्तिष्क पर पड़ता है नकारात्मक प्रभाव

प्लास्टिक का इस्तेमाल माइंड पर भी नेगेटिव इफ़ेक्ट डालने का काम करता है। दरअसल इससे न्यूरोडेवलपमेंटल या न्यूरोडीजेनेरेटिव पर खतरा मंडराने लगता लगता है। प्लास्टिक पार्टिकल्स लंबे समय तक दिमाग पर पड़े रहने के कारण दिमाग में ब्लड सप्लाई तक ब्लॉक हो सकती है। जिससे मेंटल हेल्थ पर बुरा असर होता है जिससे दिमाग से जुड़ी कई तरह की परेशानियां पैदा हो सकती है।

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फेफड़े भी हैं खतरे में- Plastic Ke Nuksan in Hindi 

सांस के माध्यम से प्लास्टिक के जो टुकड़े फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं। वो हमारे फेफड़ों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। साइंस डायरेक्ट जर्नल में प्रकाशित हो चुके एक शोध पत्र में यह दावा किया गया की रोजमर्रा के जीवन में ज्यादा प्लास्टिक के इस्तेमाल होने से अब ज्यादातर लोगों के फेफड़ों में प्लास्टिक के छोटे कण पहुंच चुके हैं। फेफड़ों में पहुंचा यह प्लास्टिक टॉक्सिन्स से भरा हुआ है। इससे अस्थमा और पल्मोनरी कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों के होने की आशंका बढ़ती है।

शरीर के हर अंग तक कैसे पहुंच रहा प्लास्टिक 

रायपुर के न्यूरोफिजिशियन डॉ. अनिकेत गुप्ता ने बताया की प्लास्टिक के छोटे-छोटे पार्टिकल्स स्किन, सांस और खाने के जरिए शरीर के अंदर प्रवेश करते हैं। इसी तरह कुछ समय के बाद ये छोटे प्लास्टिक के पार्टिकल्स हमारे खून के जरिए शरीर के विभिन्न अंगों में जम जाते हैं। प्लास्टिक के इन छोटे पार्टिकल्स का साइज 20 माइक्रोमीटर से भी छोटा होता है। इसी वजह से ये बहुत आसानी से लिवर, किडनी और ब्रेन जैसे अंगों तक पहुंच कर उन्हें डैमेज कर देते हैं। यह माइक्रोप्लास्टिक आंतों के जरिए दिमाग तक में भी अपनी पहुंच बना रहा है।

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इन आदतों को अपनाकर कम कर सकते हैं प्लास्टिक का इस्तेमाल 

  • बच्चों को प्लास्टिक के टिफिन बॉक्स की जगह स्टील या कांच का टिफिन बॉक्स दें।
  • प्लास्टिक की ब्रश और कंघी की जगह लकड़ी की कंघी और ब्रश का इस्तेमाल करें।
  • प्लास्टिक की वॉटर बॉटल इस्तेमाल न करके इसकी जगह तांबे और कांच की बोतल का ज्यादा यूज करें।
  • प्लास्टिक बैग में कचरा भरने की बजाय कंटेनर में कचरा भरें।
  • सब्जियां प्लास्टिक के थैले में न लाकर जूट या कपड़े के बैग में लेकर आए।
  • प्लास्टिक के स्क्रबिंग आइटम्स को अवॉयड करें और नेचुरल चीजों से बने स्क्रबर्स का प्रयोग करें।

चूहों पर हुई स्टडी में भी हुए चौंकाने वाले खुलासे

हमारे शरीर में माइक्रोप्लास्टिक कहां तक पहुंचता है यह जानने के लिए वैज्ञानिकों ने चूहों पर भी रिसर्च की। इसके लिए चूहों को इंसानों के खाने जितना माइक्रोप्लास्टिक चार सप्ताह तक पानी के जरिए खिलाया गया। साथ ही पॉलीस्टाइनिन और मिक्स्ड पॉलीमर माइक्रोस्फेयर भी चूहों को नली के जरिए खिलाए गए। इसके बाद जब वैज्ञानिकों ने चूहों के खून, दिमाग, लीवर, किडनी और आंतों की जांच की तो यह देखने को मिला की यह आंतों से निकलकर माइक्रोप्लास्टिक शरीर के कई अंगों तक पहुंच चुका है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न 

मनुष्य अपने जीवनकाल में कितना प्लास्टिक खाता है?

माना जाता है की औसतन एक व्यक्ति प्रति सप्ताह 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक का उपभोग करता है। वहीं अगर पूरे जीवनकाल की बात करें तो यह लगभग 18 किलोग्राम या 40 पाउंड प्लास्टिक के बराबर होता है।

क्या प्लास्टिक से कैंसर होता है?

कई रिसर्च के माध्यम से यह दावा किया गया है की प्लास्टिक में मौजूद बिस्फिनॉल ए (बीपीए) नाम का केमिकल कोशिकाओं की संरचना में बदलाव करके कैंसर होने का खतरा बढ़ाता है। साथ ही प्लास्टिक की पॉलिथीन में रखी गरम चीज खाने या पीने से भी कैंसर होने का खतरा पैदा होता है।

प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से क्या होता है?

स्वास्थ्य के लिहाज से प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना नुकसानदायक साबित हो सकता है। दरअसल इससे कई तरह के हानिकारक रसायन शरीर में एंट्री कर लेते हैं। प्लास्टिक में मौजूद सीसा कैडमियम और पारा जैसे पदार्थ कैंसर (Cancer), विकलांगता, इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी जैसे रोगों को दावत देने का काम करता है। यह बच्चों के विकास पर भी बुरा असर डालता है।

डिस्क्लेमर: केवल सामान्य जानकारी और बचाव के तरीके बताने के लिए यह लेख लिखा गया है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें और उनके बताएं गए इलाज का अनुसरण करें।

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