Virtual Autism : इन दिनों ज्यादातर घरों में यह देखने को मिलता है की छोटे बच्चे मोबाइल पर अपना फेवरेट कार्टून देखते हुए या वीडियो गेम खेलते हुए ही खाना खाते हैं। पेरेंट्स भी यह सोचकर बच्चों को मोबाइल थमा देते हैं की इस बहाने बच्चा आसानी से खाना खा लेगा। मगर अनजाने में ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चे को वर्चुअल ऑटिज्म (virtual autism) नाम की मानसिक बीमारी की ओर धक्का देते हैं। दरअसल कई रिसर्च में यह सामने आया की मोबाइल की लत बच्चों की फिजिकल और मेंटल ग्रोथ पर बुरा असर डालती है। इस लत की वजह से बच्चों में वर्चुअल ऑटिज्म (risk of virtual autism in children) का रिस्क भी कई गुना बढ़ जाता है। कानपुर की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.अदिति शर्मा ने बताया कि वर्चुअल ऑटिज्म क्या है? और आप इससे अपने बच्चे को कैसे बचा सकते हैं।
क्या है वर्चुअल ऑटिज्म- Virtual Autism in Hindi
कमजोर इम्यून सिस्टम और तंत्रिका में सूजन आने के कारण बच्चे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का शिकार बनते हैं। दरअसल स्मार्टफोन, लैपटॉप और टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा प्रयोग से बच्चों में यह विकार आने लगता है। इससे बच्चों को बोलने में दिक्कत और समाज में दूसरे लोगों के साथ घुलने-मिलने और बातचीत करने में परेशानी महसूस होने लगती है। जिससे बच्चे धीरे-धीरे वास्तविक दुनिया से कटने लगते है और अपना ज्यादातर समय वर्चुअल दुनिया में बिताने लगते हैं। इस अवस्था को ही वर्चुअल ऑटिज्म का नाम दिया गया है। वर्चुअल ऑटिज्म का ज्यादा असर अक्सर 2 से 5 साल तक के बच्चों में देखने को मिलता है।
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ये हैं वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण- Virtual Autism Symptoms in Hindi
- वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार बच्चे दूसरों से बात करने में हिचकिचाते हैं। तभी ये बच्चे लोगों से घुलने मिलने में कतराते हैं।
- इन बच्चों में बोलने की क्षमता का विकास भी अन्य बच्चों की तुलना में काफी देरी से होता है। आमतौर पर ऐसे बच्चे 2 साल के बाद भी सही से बोल नहीं पाते।
- ऐसे बच्चे किसी भी बात का जल्दी रिस्पॉन्स नहीं देते और नाम पुकारने पर भी अनसुना कर देते हैं।
- इन बच्चों में चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। किसी भी छोटी बात पर चिढ़ जाते हैं।
- ऐसे बच्चे अपनी उम्र के अनुसार एक्टिव भी नहीं होते। सारा दिन अपने आप में खोए और चुप-चुप रहते हैं।
- आई-कांटेक्ट बनाने में दिक्कत महसूस करते हैं। इसी वजह से आई कांटेक्ट बनाने से बचते हैं।
- ये बच्चे एक ही एक्टिविटी को बार-बार दोहराते भी नजर आते हैं।
अपने बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म (Virtual Autism) से ऐसे बचाएं
बच्चों का मोबाइल देखने का समय निर्धारित करें- आपका बच्चा कितनी देर मोबाइल देखेगा इसका समय फिक्स करें। निर्धारित समय से ज्यादा देर के लिए बच्चे को मोबाइल न दें। कोशिश करें की बच्चे के लिए एक रूटीन चार्ट प्लान कर सकें। इस चार्ट में पढ़ने, खाने -पीने, खेलने-कूदने के साथ मोबाइल और टीवी देखने का समय फिक्स कर दें। धीरे-धीरे बच्चे को खुद ही इस चार्ट को फॉलो करने की आदत पड़ जाएगी।
आउटडोर एक्टिविटीज के लिए प्रोत्साहित करें- बच्चों को ज्यादा से ज्यादा आउटडोर एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करने के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चों का इंटरेस्ट आउटडोर एक्टिविटीज में बढ़ाने के लिए आप भी बच्चों के साथ किसी आउटडोर गेम में शामिल हो सकते हैं। इससे धीरे-धीरे बच्चे का इंटरेस्ट ऐसे गेम्स खेलने में बढ़ने लगेगा।
बच्चों के स्लीपिंग पैटर्न पर दें खास ध्यान- वर्चुअल ऑटिज्म जैसे मानसिक विकार को खत्म करने के लिए जरूरी है की आप अपने बच्चों के स्लीपिंग पैटर्न को दुरुस्त रखें। बड़ों के साथ- साथ बच्चे भी अब नींद नहीं आने की परेशानी का सामना कर रहे हैं। इसलिए रोजाना रात में सोने के समय से लेकर सुबह उठने के समय को निर्धारित रखें। इससे बच्चे का पाचन तंत्र तो मजबूत होगा ही साथ ही बच्चा खुद को ज्यादा एनर्जेटिक फील करेगा जिससे वो लोगों से मिलने जुलने और बातचीत करने में भी रुचि लेगा।
बच्चे को सोशल होना सिखाएं- वर्चुअल ऑटिज्म के खतरे को कम करने के लिए आप अपने बच्चे को ज्यादा से ज्यादा सोशल एक्टिविटीज में पार्टिसिपेट करने के लिए प्रोत्साहित करें। अपनी फैमिली फंक्शन में बच्चों को जरूर शामिल करें। कोशिश करें की बच्चे के ज्यादा से ज्यादा दोस्त बन सके। इससे बच्चा मोबाइल देखने की लत खुद ब खुद छोड़ देगा।
बच्चे को योग और एक्सरसाइज के लिए प्रेरित करें- योग और एक्सरसाइज के माध्यम से वर्चुअल ऑटिज्म जैसी बीमारियों से बच्चों को बचाया जा सकता है। कोशिश करें की बच्चा खेल खेल में हल्की-फुल्की एक्सरसाइज सीख सके। खुद भी रोजाना योग और एक्सरसाइज जरूर करें। आपको देखकर भी बच्चे का इंटरेस्ट इस ओर बढ़ेगा।
स्ट्रेस बॉल और सेंसरी खिलौनें भी कर सकते हैं मदद- बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म से बचाने में स्ट्रेस बॉल और सेंसरी खिलौनें भी आपकी मदद कर सकते हैं। स्ट्रेस बॉल स्ट्रेस रिलीज करने में हेल्पफुल है। साथ ही इनसे मेंटल हेल्थ भी सुधरती है।
वर्चुअल ऑटिज्म फैलने की ये है बड़ी वजह
इन दिनों बच्चे बड़ी तेजी से वर्चुअल ऑटिज्म जैसे मानसिक बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। इसकी एक वजह ये भी है की आज के पेरेंट्स खुद बच्चों के हाथों में समय से पहले मोबाइल थमा देते हैं। बच्चा थोड़ा रोया नहीं की मोबाइल में कार्टून चलाकर बच्चे को दे दिया जाता है और बच्चा चुप हो जाता है। मगर थोड़ी देर मिलने वाली यह राहत बाद में बड़ी मुसीबत लेकर आती है। इसके साथ ही सिंगल-न्यूक्लियर फैमिली सेटअप के बढ़ते ट्रेंड और फैमिली मेंबर्स के बीच बढ़ती दूरियां भी ऐसी बीमारियों के बढ़ने की वजह बन रही हैं।
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पेरेंट्स इन बातों का रखें खास ध्यान
- बच्चों के लिए खुद का एग्जाम्पल सेट करें। कोशिश करें की आप भी निर्धारित समय के लिए ही मोबाइल का इस्तेमाल करें।
- बच्चों द्वारा गलती करने पर उन्हें डिमोटिवेट न करें। बच्चों को हर समय कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करे।
- बच्चों के सामने लड़ाई-झगड़ा करने से बचे। इससे बच्चा रिश्तों को कम अहमियत देना शुरू कर देता है।
- बच्चे से तेज आवाज में बात न करें। किसी दूसरे के सामने बच्चे को न डांटे।
- बच्चों के अंदर समस्याओं को खुद सॉल्व करने की आदत बनाएं।
- बच्चों को खुलकर अपने मन के भावों को बयां करने दें। उनकी बातों को शांति से सुने। हमेशा अपने विचार उन पर न थोपे।
वर्चुअल ऑटिज्म का क्या है इलाज- Virtual Autism Treatment in Hindi
वर्चुअल ऑटिज्म से बच्चों को बचाने का कोई इलाज नहीं हैं। हां पेरेंट्स इस मामले में सजग रह कर काफी हद तक बच्चे को इसका शिकार बनने से बचा सकते हैं। इसके साथ ही स्पीच थेरेपी, पर्सनालिटी डेवलपमेंट थेरेपी और स्पेशल एजुकेशन थेरेपी काफी हद तक बच्चों को इससे बाहर निकालने में मददगार साबित होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न-ऑटिज्म वाले बच्चे कैसे होते हैं?
ऑटिज्म एक ऐसा न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें पीड़ित बच्चे का दिमाग अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है। दरअसल यह ग्रोथ से जुड़ी हुई बीमारी है। इसमें बच्चे को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और लोगों के बीच मेलजोल बनाने में दिक्कत महसूस होती है।
प्रश्न- क्या ऑटिज्म दवा से ठीक हो सकता है?
मेडिकल साइंस में अभी तक ऑटिज्म का कोई ईलाज नहीं है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे का इलाज डॉक्टर, डेवलपमेंटल न्यूरोलॉजिस्ट, ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट इत्यादि के टीम वर्क से ही संभव है।
प्रश्न- ऑटिज्म के लक्षण कब शुरू होते हैं ?
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के व्यवहार संबंधी लक्षण किसी भी बच्चे में शुरुआत में ही दिखाई देने शुरू हो जाते हैं। कई बच्चों में तो 12 महीने से 18 महीने या उससे पहले की उम्र में भी ऑटिज़्म से जुड़े लक्षण दिखाई देने लगते हैं। बचपन से ही ऑटिज्म से पीड़ित बच्चा लोगों के बीच मेलजोल बनाने में दिक्कत महसूस करने लगता है।
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